सैय्यद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देते हुए गिलानी ने लिखा है कि मौजूदा हालात में मैं आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा देता हूं. मैने हुर्रियत के सभी घटक दलों को भी अपने फैसले से अवगत करा दिया है. हुर्रियत कांफ्रेस से गिलानी के इस्तीफे के बाद से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि गिलानी ने इस्तीफा क्यों दिया है लेकिन इसके पीछे की असली वजह क्या है?
नजरबन्द गिलानी का हुर्रियत से इस्तीफा
दरअसल जब से कश्मीर से धारा 370 हटाई गयी, जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया, तबसे कई हुर्रियत के नेता, जम्मू कश्मीर के भड़काऊ बयान देने वाले नेता नजरबन्द हैं तो कईयों को रिहा भी किया जा चुका है. वहीँ गिलानी अभी भी नजरबंद हैं गिलानी कई महीनों से अपने ही घर में नजरबन्द हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गिलानी ने हुर्रियत के भविष्य को देखते हुए ये कदम उठाया है.
जब दो भागों में बंट गये अलगाववादी
आपको बता दें कि ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना 9 मार्च 1993 को हुई थी. सैय्यद अली शाह गिलानी के अलावा मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी लोन, मौलवी अब्बास अंसारी और अब्दुल गनी भट्ट भी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना में अहम सदस्य थे. कॉन्फ्रेंस के पहले चेयरमैन के तौर पर मीरवाइज उमर फारूक को जिम्मेदारी दी गयी. इसके बाद 1997 में सैय्यद अली शाह गिलानी चेयरमैन बनाये गये. हालाँकि इसके बाद हुर्रियत में कई तरह के टकराव भी देखने को मिले. टकराव इस कदर बढ़ गया कि इस संगठन के दो भाग हो गये. मीरवाइज उमर फारूक और गिलानी के गुट ने अलग-अलग रास्ता अपना लिया. मीरवाइज के गुट को मॉडरेट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कहा जाने लगा. जबकि दूसरी तरफ गिलानी ने अपने संगठन कतहरीक-ए हुर्रियत को कॉन्फ्रेंस का नाम दिया.
पाकिस्तान के साथ थे खुफिया संबंध
गिलानी को पाकिस्तान के साथ खुफिया संबंध रखने के लिए जेल भी जाना पड़ा है. गिलानी जम्मू कश्मीर के अलगवावाद के एक बड़े नेता थे और समय समय अलगावादी नेताओं के भड़काऊ बयान, पाकिस्तान के साथ खुफिया संबंध की बातें सामने आती रही हैं. पिछले कुछ समय से जबसे कश्मीर में बदलाव आया है तब से अलगाववादी नेताओं की करतूत पर लगाम लगी हुई है. आतकंवाद फैलाने वाले स्थानीय युवकों को भी मुख्यधारा में लाया जा रहा है ऐसे में नजरबंद गिलानी का इस्तीफा कश्मीर में हो रहे बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है.
सैय्यद अली शाह अली गिलानी जैसे अलगाववादी नेताओं को कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं के लिए जिम्मेदार भी माना जाता रहा है. पाकिस्तान के साथ मिलीभगत की वजह से इन्हें भी घाटी में हो रहे आतंकी घटनाओं का मास्टरमाइंड भी कहा गया. हालाँकि गिलानी के इस्तीफे के बाद अब ये देखना होगा कि आखिरकार गिलानी गुट के अलगाववादी नेता कितने सक्रीय रहते हैं, क्योंकि जम्मू कश्मीर में हालात बहुत बदल गये हैं.
संगठन में ही उठी गिलानी के खिलाफ आवाज?
वैसे गिलानी की उम्र भी 90 साल के आस पास है, उनके लगातार अस्वस्थ होने की खबरें भी सामने आती रही हैं. ऐसे में लोगों का ये भी कहना है कि गिलानी ने अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अपने पद से इस्तीफा दिया है. वहीँ हुर्रियत पर पैनी नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि संगठन में गिलानी का विरोध लगातार बढ़ रहा था, इसका कारण ये था कि पिछले कई सालों से गिलानी जम्मू कश्मीर के अलगाववादी सियासत में कुछ नया नही कर पा रहे थे. इसके बाद जबसे कश्मीर की स्थिति बदली है तब से मानों इनपर एक चाबुक चल गया है.
सरकार बदली, हालात बदले और बदला गिलानी का चरित्र?
हालाँकि इसमें कोई दो राय नही है कि पहले की सरकारें अलगाववादी नेताओं को अच्छी खासी सुविधाएं मुहैया करवाती रही हैं. इन नेताओं ने जम्मू कश्मीर के लोगों को बहला कर उग्रवादी बनाया, आतंकी बनाया, पत्थरबाज बनाया और खुद के परिवार को घाटी से बाहर रखा, अपनी प्रॉपर्टी बनाई, होटल बनवाये और अपना कारोबार चमकाया. गिलानी पूरे जीवन भर भारत और भारतीय सेना की आलोचना करते रहे, पाकिस्तान और आतंकियों के हित में बातें करते रहे, लोगों को भड़काते रहे.. लेकिन देश में सरकार बदली तो हालात भी बदले. एनडीए की सरकार ने जम्मू कश्मीर के मुद्दे को सबसे ऊपर रखा था , सरकार बनने के बाद एक के बाद एक अलगाववादी नेताओं पर नकेल कसनी शुरू हुई और अब गिलानी ने अपने अंतिम समय में घुटने टेकते हुए हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया है.