राम मंदिर की नींव के नीचे टाइम कैप्सूल रखने की बात गलत, लेकिन भारत के इन जगहों पर रखा गया है टाइम कैप्सूल

5 अगस्त को पीएम मोदी भी इस भूमि पूजन में हिस्सा लेंगे। लेकिन इस बीच जो खबर सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही वो ये कि, राम मंदिर की नींव के नीचे एक टाइम कैप्सूल रखा जाएगा।

कई सालों के पुराने विवाद के बाद आखिरकार राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। अगने महीने की तीन तारीख से इसके लिए भूमि पूजन की शुरुआत हो जाएगी। 5 अगस्त को पीएम मोदी भी इस भूमि पूजन में हिस्सा लेंगे। लेकिन इस बीच जो खबर सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही वो ये कि, राम मंदिर की नींव के नीचे एक टाइम कैप्सूल रखा जाएगा। जिसका मकसद मंदिर से जुड़े साक्ष्य भविष्य के लिए रखे जाएंगे, जिससे आगे कभी विवाद ना पैदा हो।

Ram Mandir

आपको बता दें कि ये टाइम कैप्सूल एक कंटेनर जैसा होता है, जिसमें दस्तावेज से लेकर जरूरी कागजात भी रखे जाते हैं। समय, काल से लेकर तमाम कानूनी जानकारियां इसमें समाहित होती हैं, लेकिन इस बीच सवाल उठा है कि क्या वाकई राम मंदिर की नींव के नीचे टाइम कैप्सूल रखा जाएगा, या फिर ये सिर्फ कोरी-कल्पना है। तो आपको बता दें कि ये पूरी तरह से झूठी खबर है। ऐसा कुछ नहीं है। अयोध्या में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इसको लेकर जानकारी दी है कि, “5 अगस्त को राम मंदिर कंस्ट्रक्शन साइट की जमीन के नीचे टाइम कैप्सूल रखे जाने की खबर गलत है मनगढ़ंत है। मैं सबसे आग्रह करूंगा कि जब राम जन्मभूमि ट्रस्ट की तरफ से कोई अधिकृत वक्तव्य जाए उसे ही आप सही मानें।”

अब आपको समझ जाना चाहिए कि राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ कुछ अफवाहें भी सामने आ रही हैं जिसे लोग बिना परखे विश्वास कर ले रहे हैं। इसिलिए चंपत राय ने कहा कि, जबततक रामजन्मभूमि ट्रस्ट की तरफ से कोई जानकारी ना दी जाए, उसे आधिकारिक जानकारी ना मानी जाय। फिलहाल इससे पहले ट्रस्ट के ही एक सदस्य के हवाले से खबर आई थी कि मंदिर की नींव में टाइम कैप्सूल रखा जाएगा जिससे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जानकारी मिलेगी। जिसे चंपत राय ने खारिज कर दिया है।

वैसे ये टाइम कैप्सूल होता क्या है?

टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है। यह हर तरह के मौसम का सामना कर सकता है। आमतौर पर भविष्य में लोगों के साथ कम्युनिकेशन करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इससे पुरातत्वविदों या इतिहासकारों को स्टडी में मदद मिलती है। 30 नवंबर 2017 को स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल निकला था। यह ईसा मसीह की मूर्ति के रूप में था। मूर्ति के भीतर 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जानकारियां थीं।

वैसे अब राम मंदिर को लेकर टाइम कैप्सूल की खबर का खंडन तो हो गया है लेकिन यह देश में कोई पहला अवसर नहीं था, जब किसी स्थान पर टाइम कैप्सूल (काल पात्र) डाला जाता। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1973 को दिल्ली स्थित लाल किले के परिसर की जमीन में एक टाइम कैप्सूल गड़वाया था। यह वैक्यूम सील था जो तांबा और स्टील से बना था।

Ram Mandir Time Capsule

बताया जाता है कि इस टाइम कैप्सूल में उन्होंने आजादी के बाद 25 वर्षों की सरकार की उपलब्धियों का जिक्र किया है। उस टाइम कैप्सूल को लेकर जानकारी मिलती है कि उसमें स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी परिवार की भूमिका एवं देश के विकास में उसके योगदान का उल्लेख किया गया था। हालांकि इस काल पात्र के अंदर क्या डाला गया था इस बात की जानकारी कभी भी सार्वजनिक नहीं की गई। जाने माने लेखक आनंद रंगनाथन ने पूर्व पीएम की तब की तस्वीर के साथ इस घटना को ट्वीट किया है। इसको लेकर विवाद भी हुआ था। विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपना और अपने परिवार का महिमामंडन किया है। साल 1970 में मोरारजी देसाई ने कहा था कि वो कालपत्र को निकालकर देखेंगे कि कालपत्र में क्या लिखा है।

Time Capsule Indira

बाद में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो 1977 में कालपत्र निकाला भी गया, लेकिन यह पता नहीं चल सका कि उसमें लिखा क्या था। इंदिरा गांधी के कालपत्र का रहस्य आज भी रहस्य ही बना हुआ है कि उन्होंने इस टाइम कैप्सूल में क्या लिखवाया था। अन्य जगहों पर टाइम कैप्सूल की बात करें तो आईआईटी कानपुर ने अपने 50 साल के इतिहास को संजोकर रखने के लिए टाइम कैप्सूल को जमीन के नीचे दबाया था। इसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने साल 2010 में जमीन के अंदर डाला था। इस टाइम कैप्सूल में आईआईटी कानपुर के रिसर्च और शिक्षकों से जुड़ी जानकारियां थीं। आईआईटी कानपुर के अलावा चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय में भी टाइम कैप्सूल दबाया गया है।