इस समय नवरात्रि का पर्व चल रहा है. नवरात्रि के आठवें दिन यानि की अष्टमी को भक्त मां दुर्गा के आठवें रुप महागौरी की पूजा करते हैं. आज दुर्गाअष्टमी है तो हम माता रानी के 9 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. यह मंदिर चमत्कारी और बहुत ही सिद्धी वाला माना जाता है. इसके अलावा इस मंदिर को तांत्रिकों और अघोरियों का गढ़ भी कहते है. कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 7 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत की समीप स्थित है.

सबसे पुराना शक्तिपीठ
कामाख्या देवी शक्तिपीठ को सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है. इसमें देवी मां कामाख्या की पूजा बड़े ही रीति-रिवाज से की जाती है. ऐसा माना जाता है कि सती माता का योनि भाग कामाख्या स्थान पर गिरा था जिसके बाद इस स्थान पर कामाख्या देवी मंदिर की स्थापना हुई. सभी 51 शक्तिपीठों में से सिर्फ कामाख्या मंदिर को ही महापीठ का दर्जा हासिल है.
यहां स्थित कुंड की पूजा होती है
कामाख्या मंदिर में दुर्गा या फिर अम्बे मां का न कोई चित्र है और न ही कोई मूर्ति है. यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर में बने कुंड पर फूल अर्पित कर पूजा करते हैं. इस कुंड को फूलों से ढककर रखा जाता है. कहा जाता है कि इस कुंड से हमेशा पानी का रिसाव होता है. ऐसी मान्यता है कि फूलों से ढका यह कुंड वहां स्थापित किया गया है.
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शक्तिपीठ को है महापीठ का दर्जा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भगवान ने महादेव शिवशंकर का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए अपने चक्र से माता के 51 भाग कर दिए थे. जहां-जहां माता के शरीर के भाग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों को स्थापित किया गया था. इसीलिए कामाख्या शक्तिपीठ को महापीठ कहा जाता है.
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इस शक्तिपीठ मे हर साल भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि ब्रह्मापुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है. इसका कारण कामाख्या देवी मां का रजस्वला होना माना जाता है. ऐसा अम्बुवाची मेले के दौरान हर साल होता है. मान्यता के अनुसार देवी मां के रजस्वला के दिनों में उनके पास सफेद रंग का कपड़ा बिछा दिया जाता है. जिसे श्रद्धालुओं को प्रसादस्वरुप दिया जाता है.