चीन की हमेशा से यह पॉलिसी रही है कि वह अपने हितों को साधने के लिए किसी से भी लड़ जाता है. ताजा मामले में भी यही हुआ है लेकिन इस बार उसको फिर से बड़ा नुकसान हुआ है. कोरोना वायरस फैलाने में नाम आने के बाद चीन कई देशों के निशाने पर है. खासकर भारतीय सीमा पर उकसावे की राजनीति कर उसने ब़ड़ी भूल की है. जिसका खामियाजा चीन को न केवल भारत में उठाना पड़ रहा है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उसको बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस समय चीन के एक पूर्व सैन्य अधिकारी की कंपनी ह्वावे न केवल खबरों मे बनी हुई है बल्कि दुनिया के बड़े देश इससे खौफजदा हैं. ह्वावे का नाम आते ही अमेरिका और ब्रिटेन सहित बडे देश सकपका रहे हैं.आइए जानते हैं क्या है ह्वावे का मामला.
‘ह्वावे’ से डरी दुनिया
दरअसल ह्वावे कंपनी सैमसंग के बाद दुनिया की सबसे बड़ी स्मार्टफोन सप्लायर कंपनी है. इस कंपनी का 18 फीसदी अतंर्राष्ट्रीय बाजार पर कब्जा है. जो कि ऐपल औऱ बाकी कंपनियों से भी ज्यादा है. लेकिन ब्रिटेन ने अपने यहां के मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को कहा है कि इस साल के बाद वह ह्वावे के नए 5G नेटवर्क न खरीदें. साथ ही इन कंपनियों को 2027 तक इसकी 5G किट को फोन से हटाना होगा.
इसी तरह से अमेरिका अपने यहां की कंपनियों पर ह्वावे के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा चुका है. यहां तक की अमेरिका उससे जुड़ी सहयोगी कंपनियों को भी 5G नेटवर्क से हटाने की योजना बना रहा हैं. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी इसी तरह के प्रतिबंध लगाए हैं.
क्या है वजह
ह्वावे से खौफ की वजह है इसके मालिक का चीन का पूर्व सैन्य अधिकारी होना. दरअसल दक्षिणी चीन के शेंजन में एक पूर्व सैन्य अधिकारी रेन जंगफेई ने 1987 में ह्वावे की शुरुआत की थी. शुरुआत मे तो इसने मोबाइल फोन नेटवर्क के लिए संचार उपकरण बनाए लेकिन बाद में यह बड़ी कंपनियों में से एक बन गई. इस कंपनी में इस समय 180000 कर्मचारी काम कर रहे हैं.
अमेरिका सहित ब्रिटेन कह रहे हैं ह्वावे 5G उपकरणों के जरिए जासूसी कर सकता है. यह देश इस कंपनी के मालिक रेन की सैन्य पृष्ठभूमि को इसका जिम्मेदार मान रहे हैं. बता दें कि रेन 1983 तक चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सदस्य थे. इसके अलावा चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य भी रहे हैं. इस मामले पर ह्वावे का कहना है कि कंपनी का पार्टी से अब कोई लेना देना नही है.
तो क्या ह्वावे जासूसी कर रहा है
चीन के दोहरे रवैये औऱ वहां के नेशनल इटेंलिजेंस नियम 2017 का हवाला देकर अमेरिका और ब्रिटेन उस पर खुफिया जानकारी एकत्रित करने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं. इस नियम के अनुसार किसी भी संगठन को राष्ट्र के खुफिया काम में समर्थऩ और सहयोग देना आवश्यक है’. अमेरिका मान रहा है कि इसका मतलब है कि चीन ह्वावे को जासूसी के लिए भी कह सकता है.
हालांकि ह्वावे ऐसी किसी भी आशंका से इंकार कर रहा है. उसने कहा है कि उससे कभी जासूसी के लिए नहीं कहा गया है. और वह स्पष्ट रुप से कभी भी ऐसा नही करेगा. कंपनी ने कहा कि निजी सुरक्षा के मामलों पर हम कभी ऐसा नही करेंगें. हम किसी देश या संगठन को कभी नुकसान नही पहुंचायेगें.
इस बीच 5G के लिए अमेरिका अब अपने यहां कि कंपनियों पर निर्भरता दिखायेगा. जिसमें सिस्को, जूनिपर नेटवर्क्स और क्वेलकॉम जैसी कंपनियां शामिल है. उधर य़ूरोप में स्वीडन की एरिक्सन औऱ फिनलैंड की नोकिया 5G का निर्माण करती हैं. नोकिया ने एक बयान जारी कर कहा है कि ब्रिटेन के नेटवर्क में ह्वावे के उपकरण को बदलने की क्षमता और विशेषज्ञता है.