Bankruptcy Law क्या है?
भारत में वर्ष 2016 से पहले कोई भी ऐसा कानून नहीं था जो ‘इनसॉल्वेंसी एवं बैंक्रप्सी’ को एक साथ परिभाषित करता हो, इससे पहले इसे परिभाषित करने के लिए लगभग 12 कानूनों का इस्तेमाल किया जाता था। 2016 में नया कानून Bankruptcy Law लाया गया था जिसमें यह प्रावधान किया गया कि यदि 75 प्रतिशत ऋणदाता (जो उधार देते है) सहमत हों तो ऐसी कोई कंपनी जो अपने ऋण नहीं चुका पा रही, पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है। यदि तब भी वसूली नहीं हो पाती तो वह फर्म या व्यक्ति स्वयं दिवालिया हो जायेंगे।
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Bankruptcy Law के लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों बचाने का प्रयास किया गया है। ऋण न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को अवसर दिया जाता है कि वह एक निश्चित कालखंड में अपने ऋण को चुका दे अन्यथा स्वयं को दिवालिया घोषित करे।
कोई ऋणी यदि दोषी पाया जाता है तो उसे 5 साल की सजा का भी प्रावधान है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल द्वारा किसी भी कंपनी के दिवालिया घोषित करने के लिए प्रस्तावित किया जाता है और किसी भी व्यक्ति को दिवालिया घोषित करने के लिए ऋण वसूली ट्रिब्यूनल काम करता है।
क्या है IBC
IBC – Insolvency and Bankruptcy Code के तहत कर्ज न चुकाने वाले बकाएदारों से निर्धारित समय के अंदर कर्ज वापसी के प्रयास किए जाते हैं। ऐसा करने से बैंकों की आर्थिक स्थिति में भी आंशिक सुधार हुआ है।
क्या है इस विधेयक में संशोधन का अर्थ ?
इसके मुताबिक 25 मार्च, 2020 के बाद से अगले 6 महीने या 1 साल तक किसी भी कंपनी के खिलाफ CIRP का आवेदन नहीं किया जा सकता यानी उन्हें IBC में लेकर नहीं जाया जा सकता। सरकार ने इस प्रक्रिया पर अभी इसलिए रोक लगाई है क्योंकि कोरोना और लॉकडाउन की वजह से डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों पर सेक्शन 10A 25 मार्च से अगले छह महीने या 1 साल तक लागू न हो।